Tuesday, October 19, 2010

Namaz for unity आदरणीय भाई पी.सी.गोदियाल जी ! क्या हिन्दू भी नमाज़ अदा कर सकते हैं सदभावना की मिसाल कायम करने के लिए ? Ejaz

@ पी.सी.गोदियाल जी !
आपने हकनामा ब्लॉग पर दूसरे ब्लोगर्स के कमेंट्स को उलटी दस्त की उपमा दी है जोकि सरासर अनुचित है और आपके अहंकार का प्रतीक भी अहंकार से और अशिष्ट व्यवहार से दोनों से ही रोकती है भारतीय संस्कृति जिसका झंडा आप लेकर चलने का दावा करते है, मुझे लगता है कि आपका दावा सच नहीं है 
सारे झगड़ों की जड़ अज्ञानता है बाबरी मस्जिद तोड़ने वाले बाबर के ख़िलाफ़ नफरत में भरे हुए थे इसीलिए उन्होंने मस्जिद तोड़ दी जबकि मस्जिद में उसकी पूजा होती है जिसने खुद रामभक्तों को पैदा किया. जीवन एक परीक्षा है कि कौन मालिक का बंदा  है और मालिक से और उसके  हुक्मों से लापरवाह और अनजान हैं, रामभक्तों की तरह मुसलमानों में भी बहुत लोग हिन्दुओं से नफ़रत करते हैं या फिर तौहीद के इल्म से भी कोरे हैं जैसे कि हाशिम अंसारी साहब और उनके साथ नज़र आने वाले तथाकथित मुस्लिम धर्मगुरु. इसी अज्ञान की वजह से उन्होंने सरयू नदी की पूजा की लेकिन जब कर ही ली तो मालिक ने हिन्दुओं के सामने एक परीक्षा खड़ी कर दी  कि क्या हिन्दू भी नमाज़ अदा कर सकते हैं सदभावना की मिसाल कायम करने के लिए ? सदभावना क़ायम करने के लिए सत्य की भावना ज़रूरी है. सत्य है परमेश्वर और जो परमेश्वर न हो उसे एक परमेश्वर की ही उपासना करना चाहिए. यानि कि हम सब को एक ईश्वर के प्रति ही समर्पित रहना चाहिए क्योंकि परमेश्वर ही उसका आधार है इस के जानने का नाम 'ज्ञान' है. ज्ञान आयेगा तो प्रेम खुद साथ लायेगा और तब मिटेगी भेद की दीवार और ऊंची उठेगी इज्ज़त की मीनार दिल से निकालो दिरहम दीनार यही है बस मेरी पुकार.
अयोद्धया में हिन्दू मुस्लिम धर्मगुरुओं ने मिलकर की सरयू की पूजा. क्यों की ? यह तो वही बताएँगे, आप देखना चाहें तो देख लीजिये यहाँ पर

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अमर उजाला ब्यूरो
अयोध्या। रामनगरी में बाबरी मसजिद के मुद्दई हाशिम अंसारी, गुजरात से आए मुसलिम और संतों ने सरयू तट पर आपसी एकता व सौहार्द बनाए रखने का संकल्प लिया। मंगलवार को वैदिक मंत्रोच्चार के बीच पतित पावनी सरयू में दुग्ध अर्पित कर सभी लोगों ने देशवासियों को अमन का पैगाम देने की कोशिश की।
हाशिम अंसारी ने कहा कि समाधान की राह शीघ्र निकलेगी, लेकिन इस राह में सियासी लोगों को जगह नहीं बनाने देंगे। उनका कहना था कि सियासत से अलग होकर मंदिर-मसजिद की हिफाजत करेंगे। कहा कि अब इस मसले का अंतिम समाधान होना चाहिए। यह समाधान सर्वमान्य हो यह महत्वपूर्ण है। हम आपस में लड़ते रहेंगे, तो देश व समाज का बड़ा नुकसान होगा। बाहरी ताकतें तो चाह ही रहीं हैं कि हम आपस में लड़ें।
सरयू तट से हिंदू-मुसलिम-सिख-इसाई का जो नारा बुलंद किया गया, इसका संदेश अयोध्या से पूरे विश्व में जाएगा।
गुजरात के खेड़ा से आए मानव धर्म के प्रचारक व खानका इमाम शाही सैय्यद मेंहदी हुसैन, सैय्यद जाहिद अली हैदर अली व मुरताज मेंहदी, महंत अवध राम दास, खुनखुन महाराज, महंत प्रह्लाद शरण, बाबा भूतनाथ, हरदयाल शास्त्री, सियाराम शरण, म. मनमहेश दास ने कहा कि सरयू तट से शांति का संदेश दिया गया है।
नृत्य गोपाल, वेदांती से की सिंहल ने भेंट
अयोध्या। रामजन्म भूमि विवाद का आंकलन करने विहिप सुप्रीमो अशोक सिंहल अपराह्न कारसेवकपुरम पहुंचे। सांय पांच बजे उन्होंने रामजन्म भूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास व न्यास के वरिष्ठ सदस्य डा. रामविलास दास वेंदाती से कारसेवकपुरम में ही भेंट की। मुलाकात को मीडिया से दूर रखा गया।
सूत्रों के अनुसार विहिप सुप्रीमो ने समझौते की कोशिशों का परिणाम देख लेने में कोई हर्ज नहीं बताया। शिथिल नजर आए 85 वर्षीय सिंहल कारसेवकपुरम में ही रहे। न केवल शीर्ष धर्माचार्यों को उनसे मिलने कारसेवकपुरम आना पड़ा बल्कि वे उन रामलला का दर्शन करने भी नहीं जा सके, जिनके लिए उनका राष्ट्रव्यापी आंदोलन रहा। विहिप के प्रांतीय मीडिया प्रभारी शरद शर्मा ने बताया कि उनकी यह यात्रा अनौपचारिक है और दिल्ली से इलाहाबाद लौटते हुए यहां पहुंचे सिंहल बुधवार को अपराह्न इलाहाबाद के लिए रवाना हो जाएंगे।


12 टिप्पणियाँ:

Fariq Zakir Naik said...

good post

Fariq Zakir Naik said...

thank you

DR. ANWER JAMAL said...

ऐजाज़ उस चराग़ ए हिदायत का है यही

रौशनतर अज़ सहर है ज़माने में शाम ए हिन्द

DR. ANWER JAMAL said...

Nice post.

हक़ीक़त said...

आपने अच्छा सवाल उठाया है , लेकिन इसका जवाब कौन देने के लिए आएगा कौन ?
ये लोग सिर्फ ऐतराज़ करना जानते हैं , बस .

बुलंद ख़याल said...

बुलंद ख़याल है आपका , आप जैसा ही मैं भी हूँ .

Sharif Khan said...

या फिर तौहीद के इल्म से भी कोरे हैं जैसे कि हाशिम अंसारी साहब और उनके साथ नज़र आने वाले तथाकथित मुस्लिम धर्मगुरु.

जब कोई मुसलमान मस्जिद बनवाने के लिए ज़मीन देता है तो उसी वक़्त से उस ज़मीन पर से उसका हक ख़त्म हो जाता है और वह ज़मीन मस्जिद की हो जाती है. अब अगर ज़मीन देने वाला शख्स भी चाहे तो किसी समझोते के तहत उस ज़मीन को या उसके कुछ हिस्से को किसी दूसरे मकसद के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकता. हाशिम अंसारी साहब का मस्जिद के लिए मुक़दमा लड़ना अच्छी बात थी लेकिन मस्जिद की पूरी ज़मीन पर या उसके कुछ हिस्से पर समझोते की बात करने का हाशिम अंसारी साहब या कोई संस्था या पूरे देश के मुसलमान भी हक नहीं रखते क्योंकि मस्जिद पर किसी एक कौम का या किसी एक मुल्क का हक न होकर सारी दुनिया के मुसलमानों का हक होता है.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

सर्वप्रथम इजाज भाई इस नाचीज की टिप्पणी को इतनी अहमियत देने हेतु आपका शुक्रिया अदा करना चहुंगा, साथ ही डां जमाल सहाब का भी शुक्रिया अदा करुंगा जिनके अथक प्रयास से मे आपके इस लेख तक पहुंचा ! और साथ ही उन्हे यह भी सन्देश देना चाहुंगा कि आपका यह आरोप गलत है कि मैं अपनी टिप्पणी देकर वापस चला आया ! मैं कहुंगा कि आप भी इस बात को ऐप्रिसियेट करेंगे कि एक ब्लोगर हर वक्त इस ब्लोग जगत पर तो चिपका नही रह सकता!

अब हकनामा के उस लेख और उस पर मौजूद ब्लोगरों , पाठकों की टिप्प्णियों के बारे मे सिर्फ़ इतना कहुंगा कि दूसरे पर आरोप लगाना बहुत आसान काम है मगर क्या आप लोगो ने मेरी उस बात पर मनन किया जिस्का जिक्र मैंने अपनी टिप्पणी मे किया ? एक साधारण सा सवाल जरा इमानदारी से उत्तर ढूढियेगा; कोइ एक वाक्या इन पिछले ६० सालों का बतायिये जिसमे अकारण ही आर एस एस ने मुस्लमानो के खिलाफ़ बोली हो ? यह मत भूलिये कि आर एस्स एस्स राष्ट्रवाद कीबात करता है, जबकि मुस्लिम संग्ठन सिर्फ़ धर्म की !
खैर, ज्यादा मुह मियां मिठ्ठु बनने की आदत नही है इस लिये यहां सिर्फ़ इतना ही कहुंगा कि नमाज की बात छोडिये, सिर्फ़ इतना बताईये कि क्या मुस्लमान भाइ इस देश की धार्मिक संरचना को ध्यान मे रख कर सह अस्तित्व और सहिश्णुता के लिये धर्म वाद छोड राष्ट्रवाद अपना सकते है ? दूसरो को उपदेश तो सभी दे देते है लेकिन क्या कभी अप ने खुद के गिरेवान मे झांक पाते है ?

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

सर्वप्रथम इजाज भाई इस नाचीज की टिप्पणी को इतनी अहमियत देने हेतु आपका शुक्रिया अदा करना चहुंगा, साथ ही डां जमाल सहाब का भी शुक्रिया अदा करुंगा जिनके अथक प्रयास से मे आपके इस लेख तक पहुंचा ! और साथ ही उन्हे यह भी सन्देश देना चाहुंगा कि आपका यह आरोप गलत है कि मैं अपनी टिप्पणी देकर वापस चला आया ! मैं कहुंगा कि आप भी इस बात को ऐप्रिसियेट करेंगे कि एक ब्लोगर हर वक्त इस ब्लोग जगत पर तो चिपका नही रह सकता!

अब हकनामा के उस लेख और उस पर मौजूद ब्लोगरों , पाठकों की टिप्प्णियों के बारे मे सिर्फ़ इतना कहुंगा कि दूसरे पर आरोप लगाना बहुत आसान काम है मगर क्या आप लोगो ने मेरी उस बात पर मनन किया जिस्का जिक्र मैंने अपनी टिप्पणी मे किया ? एक साधारण सा सवाल जरा इमानदारी से उत्तर ढूढियेगा; कोइ एक वाक्या इन पिछले ६० सालों का बतायिये जिसमे अकारण ही आर एस एस ने मुस्लमानो के खिलाफ़ बोली हो ? यह मत भूलिये कि आर एस्स एस्स राष्ट्रवाद कीबात करता है, जबकि मुस्लिम संग्ठन सिर्फ़ धर्म की !
खैर, ज्यादा मुह मियां मिठ्ठु बनने की आदत नही है इस लिये यहां सिर्फ़ इतना ही कहुंगा कि नमाज की बात छोडिये, सिर्फ़ इतना बताईये कि क्या मुस्लमान भाइ इस देश की धार्मिक संरचना को ध्यान मे रख कर सह अस्तित्व और सहिश्णुता के लिये धर्म वाद छोड राष्ट्रवाद अपना सकते है ?

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

शरीफ़ खान सहाब, यही तो मुसलमानों की संकुचित मानसिक्ता है कि वे सिर्फ़ मस्जिद तक ही सिमट कर रह जाते है ! देश उनके लिये गौण हो जाता है ! अगर यही बात हिन्दु कहे कि जिस देश मे आदिकाल से उनकी आस्थाये है, उस देश पर सिर्फ़ हिन्दुओ का ही हक है, तो आप क्या कहेगे ?

Ejaz Ul Haq said...

क्या कृषण जन्म भूमि की वैल्यू कम है राम जन्म भूमि से ?
@ आदरणीय पी.सी.गोदियाल जी !
1 . राष्ट्रवाद पर हम ईमान तो ले आते लेकिन राष्ट्रवादियों जैसे काम हम कर नहीं सकते, राष्ट्रवादी बहुत अरसे से कह रहे हैं कि यदि मुसलमान बाबरी मस्जिद पर से अपना दावा छोड़ दें तो काशी और बनारस की मस्जिदों पर से हम अपना दावा छोड़ देंगे। (?)
बनारस और काशी की मस्जिदों पर से दावा क्यों छोड़ देंगे ?
क्या कृषण जन्म भूमि की वैल्यू कम है राम जन्म भूमि से ?
या फिर शिव जी की वैल्यू कम है राम चन्द्र जी से ?
और किस ने हक़ दिया सत्ता के इन दलालों को अपने देव मंदिरों की सौदेबाज़ी करने का ?
अपने राष्ट्रगौरव के प्रतिक पुरुषों के स्थानों की सौदेबाज़ी करने वाले तथाकथित राष्ट्रवादियों के चिंतन को हम स्वीकार कैसे कर सकते हैं ?
आज यह अपने देवता और अपने समाज को धोखा दे रहे हैं, और कल यह हमें भी देंगे, अगर हम इनके पीछे चले तो.
2 . सह अस्तित्व के लिए मौलाना हुसैन अहमद मदनी का आदर्श काफ़ी है, वे एक मुस्लमान थे लेकिन देश के विभाजन के खिलाफ़ थे. जबकि बहुत काल पहले पांडव देश के विभाजन की मांग कर चुके हैं और वे मुस्लमान नहीं थे . ज़मीन का बटवारा रोक देना राष्ट्रवाद के बस का नहीं है. यह तो तभी रुकेगा जब भाई और भाई के बीच प्यार बढ़ेगा,आप हमारे भाई हैं इस में कुछ शक नहीं है और हम दोनों का मालिक भी एक ही है इसमें भी कुछ शक नहीं है. जिसमे कुछ शक न हो उसमें तो आप यक़ीन कीजिये बस यही है मेरा प्रेम संदेस.

Taarkeshwar Giri said...

Accha Laga, Aur Bilkul Padh sakte hain, Kyonki Namaj Padhna koi na to Buri bat hai aur naa hi Is se atankwad failta hai

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