रामचन्द्र जी की शान इससे बुलंद है कि कलयुगी जीव उन्हें न्याय दे सकें, और राम चन्द्र जी के राम की महिमा इससे भी ज्यादा बुलंद कि उसे शब्दों में पूरे तौर पर बयान किया जा सके संक्षेप में यही कहा जा सकता है की राम नाम सत्य है और सत्य में ही मुक्ति है। अब राम भक्तों को राम के सत्य स्वरुप को भी जानने का प्रयास करना चाहिए, इससे भारत बनेगा विश्व नायक, हमें अपनी कमज़ोरियों को अपनी शक्ति में बदलने का हुनर अब सीख लेना चाहिए।
19 टिप्पणियाँ:
Beautiful post !...I admire !
राष्ट्रीय एकता बढ़ाने वाली मेरी कविता पढ़ें
आप जो भी कहना चाह रहें है वह साफ साफ कहें
बहुत उम्दा लेख
naice post
अरे भाई साफ़ साफ़ ही तो लिखा है ।
हमें अपनी कमज़ोरियों को अपनी शक्ति में बदलने का हुनर अब सीख लेना चाहिए।
रामचन्द्र जी की शान इससे बुलंद है कि कलयुगी जीव उन्हें न्याय दे सकें,
रामचन्द्र जी की शान इससे बुलंद है कि कलयुगी जीव उन्हें न्याय दे सकें,
बहुत अच्छी पोस्ट
राम नाम सत्य है
राम नाम सत्य है
रामचन्द्र जी की शान इससे बुलंद है कि कलयुगी जीव उन्हें न्याय दे सकें,
क्या बात है, बहुत ही सुन्दर शब्द रचना, बधाई ।
ईश्वर आप को लम्बी उमर दे . ताकि आप लोगो को राम नाम का सच्चा अर्थ बता सके .
आप के जनाजे में भी यही कहा जाये
''राम नाम सत्य है ''
सत्य बोलो मुक्ति है ''
एजाज़ साहब सत्य कभी छुप कर अपनी बात नहीं कहता. आप जो कहना चाहते है वह स्पष्ट रूप से तो कहिये. आप जानतें है की आप क्या मनवाना चाहतें है और हर रामभक्त भी जानता है की वह क्या मानता है. किसी एक उपासना पद्दत्ति के प्रति अनावश्यक दुराग्रह उचित नहीं है महाशय.
सत्य हमेशा सर्वतोमुखी होता है. किसी एक तरफी नहीं होता. एक ही लीक्ठी मत कूटीये, अखिल ब्राह्मांड -नायक चराचर में समान रूप से रमने वाला राम दशरथ-पुत्र राम भी है. इसे आप ना माने कोई हर्ज़ नहीं है पर यह दुराग्रह की सभी एक ही बहाव में बहें और अपने परमेश्वर को एकदेशीय मानकर संकुचित पद्दत्ति के अनुगामी बने, जिसमें "यो यथा माम प्रपध्यन्ते" के अनुसार अपने स्वामी से संपर्क के लिए अवकाश ना हो किस प्रकार उचित है ?
राम नाम सत्य है ................. जिन्दा होने पर जो समझ लेता है उसी को मोक्ष मिलता है
एक कम्पनी ने अकाउंटेंट पोस्ट की वैकेंसी निकाली, इंटरवियु में बॉस ने एक कैंडीडेट से पूछा बताओ दो और दो कितने होते है ? वो कैंडीडेट कुर्सी से उठा दरवाजे पे जाकर देखा, दांये बांये खिड़कियों में नजर दौडाई फिर बॉस के पास आकार फुसफुसाया दो और दो कितने होते ये छोडिये आपको कितने करने है ये बताईये ?
उसे तुरंत नौकरी पर रख लिया गया
एक अजन्मे परमेश्वर की भक्ति है सनातन धर्म
अहल-ए-नज़र समझते हैं इस को इमाम-ए-हिन्द
लबरेज़ है शराब-ए-हक़ीक़त से जाम-ए-हिन्द
सब फ़सलसफ़ी हैं ख़ित्त-ए-मग़रिब के राम-ए-हिन्द
और धर्म का मूल वेद भी साफ़ ही कहते हैं कि जो असम्भूति अर्थात प्रकृति रूप जड़ पदार्थ ( अग्नि , मिट्टी , वायु आदि ) की उपासना करते हैं , वे अज्ञान अंधकार मे प्रविष्ट होते है और जो 'सम्भूति' अर्थात इन प्रकृति पदार्थों के परिणाम स्वरूप सृष्टि ( पेड़ , पौधे , मूर्तियाँ आदि ) मे रमण करते हैं वे उससे भी अंधकार में पड़ते हैं । (यजुर्वेद : 40 : 9)
अनुवाद श्रीराम शर्मा आचार्य ।
नर्क का वर्णन वेदों मे - ऋग्वेद 4:5:5 में देखें 'जो पापी और बुरे कर्म करने वाले हैं उनके लिए यह अथाह गहराई वाला स्थान बना है ' सायणाचार्य ने इस स्थान का भाष्य नरक स्थान किया है ।
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने भी साफ़ कहा है कि मूर्ति पूजा और सृष्टि पूजा पाप है, यह अंधकार में ले जाती हैं, अत: वर्जित है । सायणाचार्य ने भी बताया और बिलकुल साफ़ बताया कि पापियों का ठिकाना नरक है । मूर्ति पूजा आप करेंगे नहीं, और नमाज़ आप पढेंगे नहीं, जबकि नमाज़ का सूक्षम वर्णन गीता के 6ठे अध्याय में 10वें श्लोक से 14वें श्लोक तक आप देख सकते हैं ।
धर्मग्रंथों के निषेध के बावजूद भी मूर्ति पूजा क्यों ?
धर्मग्रन्थ तो मूर्ति पूजा से बिलकुल साफ़ रोकते हैं , हमारी तरह, लेकिन आप न तो अपने धर्मग्रंथों की मानते हैं , न हमारी। मेरे कहने का यही आशय था जो बिलकुल साफ़ था, और आपने भी यही समझा , अपनी बात को पुष्ट करने के लिए मैंने रामचंद्र जी की सच्ची शान प्रकट करने वाले लेख का लिंक भी संलग्न किया था । अब बताइए कि,
(1 ) मेरी कौन सी बात सिद्धि है, और कौन सी ग़लत ?
(2 ) क्या एक सनातन सत्य को , एक अजन्मे पमेश्वर की अनन्य भक्ति को केवल इसलिए नहीं माना जायेगा कि यह सन्देश देने वाला व्यक्ति एक मुस्लमान है ?
आपकी कोई भी बात गलत नहीं है . लोग इस बात को जान ही जायेंगे . भरमाने वालों ने सदियों भरमाया , लेकिन अब भरमा नहीं पाएंगे .
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