Friday, September 24, 2010

National Harmony अयोध्या में हिन्दू मुस्लिम प्यार की बेनज़ीर मिसालें - Ejaz

सादिक़ मियां सिलते हैं रामलला के वस्त्र
राजीव दीक्षित, अयोध्या के दोराही कुआं के 45 साल सादिक अली उर्फ बाबू खान अपने को दुनिया का सबसे खुशनसीब मुसलमान मानते हैं। यह खुशनसीबी उन्हें दस वर्ष पहले हासिल हुई थी जब अयोध्या के विवादित स्थल पर विराजमान रामलला के मुख्य अर्चक (पुजारी) आचार्य सत्येन्द दास ने उनसे प्रभु के अंगवस्त्र सिलने की पेशकश की थी। तब से लेकर आज तक वह रामलला के कपड़े सिलते आ रहे हैं। मुसलमान दर्जी से प्रभु राम के कपड़े सिलवाने पर सवाल में छुपे संशय को भांपकर आचार्य सत्येन्द्र दास की उजली दाढ़ी के बीच मुस्कुराहट तैरती है। बोलते हैं, हिन्दू और मुसलमान, यह तय करने वाला मैं कौन होता हूं जब प्रभु राम स्वयं कहते हैं मम प्रिय सब मम उपजाये अर्थात मैंने ही सभी मानव को पैदा किया है, इसलिए मुझे सब प्रिय हैं। फिर आगे कहते हैं, रामराज्य की यह अवधारणा थी कि सब नर करहिं परस्पर प्रीति, चलहिं स्वधर्म सुनहि श्रुति नीति अर्थात जितने भी मानव हैं, वे परस्पर प्रेम करते हैं व अपनी परम्पराओं के अनुसार धर्मों का निर्वहन करते हैं। बाबू खान बड़ी सहजता से बताते हैं कि रामलला के रूप में भगवान बालस्वरूप में हैं, इसलिए उनका बागा (रामलला का अंगवस्त्र) सिलने के लिए मखमल के मुलायम कपड़े का इस्तेमाल होता है। वह बताते हैं कि रामलला हफ्ते के दिनों के हिसाब से वस्त्र धारण करते हैं। रविवार को वह गुलाबी, सोमवार को पूछने पर मिलता है जवाब मम प्रिय सब मम उपजाये सादिक मियां सिलते हैं रामलला के वस्त्र सादिक मियां.. सफेद, मंगलवार को लाल, बुधवार को हरा, गुरुवार को पीला, शुक्रवार को क्रीम कलर और शनिवार को नीले रंग का वस्त्र धारण करते हैं। बाबू खान पर सिर्फ रामलला के अंगवस्त्र ही नहीं, उनके सिंहासन की गद्दी और पर्दे को भी सिलने की जिम्मेदारी है। सिर्फ रामलला ही नहीं, अयोध्या के प्रमुख महंत भी उनके हुनर के मुरीद हैं। दिगम्बर अखाड़े के महंत और श्रीरामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष रहे स्वर्गीय रामचंद्र दास परमहंस को उनके हाथों का सिला बंगला कुर्ता और सदरी सुहाती थी तो हनुमानगढ़ी के महंत ज्ञान दास ने भी जब तक कुर्ता धारण किया, उन्होंने उसे सिलवाने के लिए हमेशा बाबू खान को ही याद किया। निर्मोही अखाड़े के सरपंच महंत भास्कर दास और कनक भवन के चारों पुजारियों के कुर्ते सिलने की जिम्मेदारी भी बाबू खान पर ही है। यह विडम्बना ही है कि रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद के जिस बहुचर्चित विवाद को लेकर अयोध्या बीते दो दशकों से सुर्खियों में आया, वहां के मठों से अमन व भाईचारे का ही पैगाम दिया जाता रहा है। हिन्दू समुदाय के एक वर्ग से नाराजगी मोल लेकर भी हनुमानगढ़ी के महंत ज्ञानदास ने वर्ष 2003 व 2004 में अपने आवास पर रमजान के महीने में इफ्तार आयोजित किया था। उन लम्हों को याद करके अयोध्या के मुसलमान आज भी भाववि ल हो जाते हैं। इतना ही नहीं, उसी वर्ष अयोध्या मुस्लिम वेलफेयर सोसाइटी की जानिब से बाबू खान के घर पर आयोजित ईद मिलन समारोह में वह 400 साधुओं की मंडली लेकर पहुंचे थे और वहां हनुमान चालीसा का पाठ किया था। हनुमानगढ़ी की 40 दुकानों के किरायेदार मुसलमान हैं लेकिन किसी को याद नहीं कि उनसे दुकानें खाली करने को कहा गया हो।
 http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=36&edition=2010-09-24&pageno=1

साभार- दैनिक जागरण दैनिक हिंदी समाचार पत्र
मेरठ संस्करण: शुक्रवार  24 , सितम्बर, 2010

15 टिप्पणियाँ:

DR. ANWER JAMAL said...

जानिए मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र जी के बारे में
ऐ सर्वेन्ट आफ़ अल्लाह ! अगर आपने मेरा लेख ग़ौर से पढ़ा होता और उसे समझ लिया होता तो आपको न तो कोई ग़लतफ़हमी पैदा होती और न ही मुझसे मेरा अक़ीदा पूछने की ज़रूरत ही पेश आती। मेरा अक़ीदा मेरी तहरीरों में साफ़ झलकता है। मैंने साफ़ लिखा है कि राजा दशरथ के बेटे श्री रामचन्द्र जी ने दूसरे राजकुमारों की तरह वसिष्ठ को गुरू बनाकर ज्ञान प्राप्त किया और अपनी योजनाओं को पूरा करने के लिए बहुत से लोगों की मदद भी ली, इससे पता चलता है कि वे सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान नहीं थे। वे जीवन भर खुद नियमित रूप से संध्या-उपासना करते रहे। इससे पता चलता है कि वे उपासक थे, उपासनीय नहीं थे।
मालिक के गुणों पर रखे जाते हैं उसके बन्दों के नाम
मैं इतना साफ़-साफ़ कह रहा हूं और आप फिर भी पूछ रहे हैं कि मुहम्मद और मूसा वग़ैरह नाम भी अच्छे हैं तो ये नाम मालिक के क्यों नहीं हो सकते ?
आपको पता होना चाहिए कि बन्दों के नाम मालिक के नहीं होते जबकि मालिक के सिफ़ाती नाम बन्दों के हो सकते हैं। जैसे ‘रहीम‘ अल्लाह का एक सिफ़ाती नाम है।(कुरआन, 1, 2) और अल्लाह ने हज़रत मुहम्मद स. को भी ‘रहीम‘ कहा है।(कुरआन, 9, 128) एक ही नाम होने के बावजूद आपको कभी कन्फ़्यूज़न नहीं होता क्योंकि आप अपनी परंपराओं को जानते हैं लेकिन राम और रामचन्द्र में नामों का अन्तर होने के बावजूद भी आप भ्रम के शिकार हो गए क्योंकि वैदिक साहित्य और परंपराओं की जानकारी आपको कम है।
रामचन्द्र जी ईश्वर नहीं हैं, राम नहीं हैं
राम उस मालिक का एक सिफ़ाती अर्थात सगुण नाम है जो न कभी पैदा होता है और न ही कभी उसे मौत आती है। वह सब कुछ जानता है और हर चीज़ उसके अधीन है। हर चीज़ को उसी ने रचा है, श्री रामचन्द्र जी को भी। रामचन्द्र जी त्रेतायुग में अयोध्या में पैदा हुए, ज्ञान पाया, कर्तव्य निभाया और सरयू नदी में जल-समाधि ले ली। श्री रामचन्द्र जी देशकाल में अर्थात ज़मान-ओ-मकान में बंधे थे जबकि ‘राम‘ हरेक ज़मान-ओ-मकान से, देशकाल के बंधन से मुक्त है। वह मनुष्य की बुद्धि से, उसके चिंतन से, उसकी कल्पना से, उसकी उपमा से परे है, वराउलवरा है, इसी गुण को प्रकट करने के लिए संस्कृत में उसे परब्रह्म कहते हैं। जो ‘तत्व‘ को जानता है वह इस तथ्य को भी जानता है।
राम नाम बनेगा भारतीय जाति के ‘एकत्व‘ का आधार
सामान्य जनता दशरथपुत्र श्री रामचन्द्र जी को ही ‘राम‘ कहती है तो यह उसकी ग़लती है, इसे उनके पंडित-आचार्यों को सुधारना चाहिए लेकिन यह देखकर दुख होता है कि हिन्दू जनता में इस ग़लती को उन्होंने ही रिवाज दिया है और वे इसे आज भी बनाए रखना चाहते हैं। अपने लेख में मैंने यही कहा है कि अगर ‘पालनहार राम‘ के सच्चे स्वरूप को सामने लाया जाए तो मुसलमान जान लेगा कि वह उसी को रहीम कहता है और तब हिन्दू और मुसलमान दो नहीं रह जाएंगे और भारतीय जाति अपने ‘एकत्व‘ को जान लेगी और दुनिया को शांति और कल्याण का सत्य सनातन मार्ग दिखाएगी जो कि सीधा और सहज है।

DR. ANWER JAMAL said...

Thanks for this nice post .
मस्जिद में उसी एक पालनहार को नमन किया जाता है जिसे हिन्दू भाई ‘राम‘ कहते हैं। अगर भाषा भेद से ऊपर उठकर देखा जाए तो मस्जिद तो वास्तव में होती ही है ‘राम मन्दिर‘। मस्जिद इतने ज़्यादा आदर्श रूप में राम मन्दिर होती है कि उससे ज़्यादा बना पाना तो दूर कोई सोच भी नहीं सकता।
रामभक्त जब बाबरी मस्जिद पर कुदाल चलाकर खुश हो रहे थे और सोच रहे थे कि वे एक मस्जिद ढहा रहे हैं तब वास्तव में वे एक ‘राम मन्दिर‘ ही ढहा रहे थे और ऐसा राम मन्दिर ढहा रहे थे जैसा कि वे अपने जीवन में कभी बनाने की सोच भी नहीं सकते। ये लोग अपने साथ बाबरी मस्जिद की ईंटें लेकर गये और उनके साथ तरह-तरह से अपमानजनक बर्ताव करके अपनी कुंठाओं को शांत किया। उनके बुरे नतीजे भी सामने आये और आज तक आ ही रहे हैं।
आज भारत विश्व की एक उभरती हुई शक्ति है लेकिन हम खुद अन्दर से ही कमज़ोर हैं। मन्दिर-मस्जिद के विवाद को न सुलझा पाना हमारी एक ऐसी कमज़ोरी है जिसे आज सारी दुनिया देख रही है। ऐसे में क्या तो हमारी छवि बनेगी और कौन हमसे मार्गदर्शन लेगा ?

DR. ANWER JAMAL said...

राम नाम कितना प्यारा !
पुरानी ज़बानों में बल्कि सबसे पुरानी ज़बानों में से एक संस्कृत है। संस्कृत में मालिक के सच्चे बन्दों का भी ज़िक्र मिलता है और उसके नामों का भी। मालिक के तो सभी नाम सुन्दर हैं और ‘राम‘ नाम तो इसलिए और भी प्यारा है कि इसके अर्थ में ही ‘रमणीय‘ होना निहित है।
जब मालिक ने ही भाषा-संस्कृति की दीवारों को गिरा दिया तो फिर भला मैं उन्हें कैसे खड़ी कर सकता हूं ?
झगड़े की बुनियाद है हिमाक़त
हिन्दुस्तान में दीन-धर्म का झगड़ा सिरे से है ही नहीं।
हिन्दुस्तान में झगड़ा है सांस्कृतिक श्रेष्ठता और राजनीतिक वर्चस्व का। जो इश्यू ईश्वर-अल्लाह की नज़र में गौण है बल्कि शून्य है हमने उसे ही मुख्य बनाकर अपनी सारी ताक़त एक दूसरे पर झोंक मारी। नतीजा यह हुआ कि हिन्दू और मुसलमान दोनों ही तबाह हो गए। तबाही सबके सामने है। इस तबाही से मालिक का नाम बचा सकता है लेकिन आज उसके नाम पर ही विवाद खड़ा किया जा रहा है।
झगड़ा ख़त्म होता है हिकमत से
अल्लाह की हिकमत और नबियों की सुन्नत के मुताबिक़ मैं अपने मुख़ातब की ज़बान में ही बात करता हूं। मुसलमान से बात करता हूं तो उसे मालिक का नाम लेकर उसका हुक्म उसी ज़बान में बताता हूं जिसे वह समझता है और जब हिन्दी-संस्कृत जानने वालों से संवाद करता हूं तो फिर मेरी भाषा बदल जाती है लेकिन पैग़ाम नहीं बदलता।
मेरा अक़ीदा, मेरा मिशन
‘व इन्नल्लाहा रब्बी व रब्बुकुम फ़-अ़-बुदूहू, हाज़ा सिरातुम्मुस्तक़ीम‘
मेरा और तुम सबका परवरदिगार सिर्फ़ अल्लाह तआला ही है। तुम सब उसी की इबादत करो , यही सीधी राह है।‘ -कुरआन, 19, 36 अनुवादक उपरोक्त
यही मेरा अक़ीदा है। उम्मीद है कि आप समझ गए होंगे लेकिन अगर अब भी कुछ कसर रह गई हो तो मौलाना मुहम्मद जूनागढ़ी साहब रह. के किसी मद्दाह से पूछिये कि हज़रत मौलाना ने रब का अनुवाद फ़ारसी लफ़्ज़ ‘परवरदिगार‘ क्यों किया ?

स्वतंत्र भारत said...

बहुत अच्छी पोस्ट

स्वतंत्र भारत said...

बहुत अच्छी पोस्ट

Dr. Jameel Ahmad said...

है दुआ आज मेरी,
उस खुदा परमेश्वर से,
इल्म और बुद्धि अता कर
अपनी कृपालु नज़र से ।
है शरीर आत्मा और का,
भास्कर और सोम भी तू ,
नाम है अल्लाह गरचे ,
है कही पर ओम भी तू ।

Dr. Jameel Ahmad said...

AChha LiKha Aapne .

Mahak said...

ये एकता यूँ ही बनी रहे ,
@Ejaz जी ,आपका धन्यवाद इस जानकारी और पोस्ट के लिए


महक

Shah Nawaz said...

अच्छी जानकारी....बढ़िया प्रयास!

ABHISHEK MISHRA said...

very nice post

Ayaz ahmad said...

अच्छी पोस्ट

ZEAL said...

.

भाई एजाज़ हक़ ,

इतनी सुन्दर जानकारी से रूबरू कराने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार। सादिक अली भाई जैसा जज्बा हम सभी के मन में हो। आपकी पोस्ट में दी गयी जानकारियों को पढ़कर मन में हर्ष के आंसू हैं। इस पवित्र सन्देश का प्रसार करने के लिए ह्रदय से आपका आभार।

हिन्दुस्तान की पवित्र भूमि पर रहने वाले हम हिन्दू मुस्लिम , भाई बहनों को कोई बाँट नहीं सकता , हम भारतीय हैं । हम एक हैं और सदैव एक ही रहेंगे।

आभार।
.

अजय कुमार said...

उपयोगी जानकारी ,नेता जी लोग पढ़ें -सुनें ।

Anonymous said...

जिनको नहीं पता कि जीना क्या है और मारना क्या है वो फिर जीने के भी कुछ भी कर लेते है और मरने के लिए भी कुछ भी कर लेते है ! मिसाल के तौर पर आत्म हत्या करने वाल जिदगी कि अहमियत नहीं जानता उसे सिर्फ मौत सुझाई देती है तो फिर मरने के लिए कोई भी तरीका अपना लेता है ! उसे सिर्फ मारना होता है इसलिए सारे तरीके जो मौत दे सब अच्छे है उसके लिए

S.M.Masoom said...

Ejaz Haq sahab Good post.

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