Thursday, September 30, 2010
Ram Nam - राम नाम सत्य है - Ejaz
रामचन्द्र जी की शान इससे बुलंद है कि कलयुगी जीव उन्हें न्याय दे सकें, और राम चन्द्र जी के राम की महिमा इससे भी ज्यादा बुलंद कि उसे शब्दों में पूरे तौर पर बयान किया जा सके संक्षेप में यही कहा जा सकता है की राम नाम सत्य है और सत्य में ही मुक्ति है। अब राम भक्तों को राम के सत्य स्वरुप को भी जानने का प्रयास करना चाहिए, इससे भारत बनेगा विश्व नायक, हमें अपनी कमज़ोरियों को अपनी शक्ति में बदलने का हुनर अब सीख लेना चाहिए।
Tuesday, September 28, 2010
Unity and Humanity ईश्वर एक है, धरती है, कौन विरोध करता है मेरी बात का -Ejaz
कश्मीर को लेकर गैरमुसलिम समाज आमतौर पर भ्रमित है,रियासत जम्मू एंड कश्मीर के जो मुस्लमान नेता अलगाववादी आन्दोलन चला रहे हैं ,उसे शेष भारत के मुसलमानों का कोई समर्थन प्राप्त नहीं है यही वजह है कि शेष भारत से कोई भी मुस्लमान उनके सशस्त्र आन्दोलन में आज तक शरीक नहीं हुआ। उनके अलगाववादी आन्दोलन के बारे में सवाल उन कश्मीरी लेखकों से पूछा जाना चाहिए जो कि अलगाववाद के समर्थक हैं न कि हर एक भारतीय मुस्लमान से । कश्मीर से हिन्दुओं को भगाए जाने का सवाल कश्मीरियों से पूछिए क्योंकि कश्मीर को अलग करने की मांग को हम नाजायज़ मानते हैं क्योंकि तोड़ना नाजायज़ और जोड़ना इस्लाम में वाजिब है हम तो चाहते हैं की बंगलादेश और पाकिस्तान भी जुड़ें और देश भी ताकि साड़ी धरती 'एक' हो जाये सारी धरती हमारी माँ है इसलिए हम भारत को माता नहीं कहते, जो भारत को माता कहते हैं वे धरती का विभाजन स्वीकार करते हैं. जबकि हम इसे अस्वीकार करते हैं. ईश्वर एक है, धरती एक है, इसलिए सारी मानव जाती को भी अब एक हो जाना चाहिए.
कौन विरोध करता है मेरी बात का
Friday, September 24, 2010
National Harmony अयोध्या में हिन्दू मुस्लिम प्यार की बेनज़ीर मिसालें - Ejaz
सादिक़ मियां सिलते हैं रामलला के वस्त्र
राजीव दीक्षित, अयोध्या के दोराही कुआं के 45 साल सादिक अली उर्फ बाबू खान अपने को दुनिया का सबसे खुशनसीब मुसलमान मानते हैं। यह खुशनसीबी उन्हें दस वर्ष पहले हासिल हुई थी जब अयोध्या के विवादित स्थल पर विराजमान रामलला के मुख्य अर्चक (पुजारी) आचार्य सत्येन्द दास ने उनसे प्रभु के अंगवस्त्र सिलने की पेशकश की थी। तब से लेकर आज तक वह रामलला के कपड़े सिलते आ रहे हैं। मुसलमान दर्जी से प्रभु राम के कपड़े सिलवाने पर सवाल में छुपे संशय को भांपकर आचार्य सत्येन्द्र दास की उजली दाढ़ी के बीच मुस्कुराहट तैरती है। बोलते हैं, हिन्दू और मुसलमान, यह तय करने वाला मैं कौन होता हूं जब प्रभु राम स्वयं कहते हैं मम प्रिय सब मम उपजाये अर्थात मैंने ही सभी मानव को पैदा किया है, इसलिए मुझे सब प्रिय हैं। फिर आगे कहते हैं, रामराज्य की यह अवधारणा थी कि सब नर करहिं परस्पर प्रीति, चलहिं स्वधर्म सुनहि श्रुति नीति अर्थात जितने भी मानव हैं, वे परस्पर प्रेम करते हैं व अपनी परम्पराओं के अनुसार धर्मों का निर्वहन करते हैं। बाबू खान बड़ी सहजता से बताते हैं कि रामलला के रूप में भगवान बालस्वरूप में हैं, इसलिए उनका बागा (रामलला का अंगवस्त्र) सिलने के लिए मखमल के मुलायम कपड़े का इस्तेमाल होता है। वह बताते हैं कि रामलला हफ्ते के दिनों के हिसाब से वस्त्र धारण करते हैं। रविवार को वह गुलाबी, सोमवार को पूछने पर मिलता है जवाब मम प्रिय सब मम उपजाये सादिक मियां सिलते हैं रामलला के वस्त्र सादिक मियां.. सफेद, मंगलवार को लाल, बुधवार को हरा, गुरुवार को पीला, शुक्रवार को क्रीम कलर और शनिवार को नीले रंग का वस्त्र धारण करते हैं। बाबू खान पर सिर्फ रामलला के अंगवस्त्र ही नहीं, उनके सिंहासन की गद्दी और पर्दे को भी सिलने की जिम्मेदारी है। सिर्फ रामलला ही नहीं, अयोध्या के प्रमुख महंत भी उनके हुनर के मुरीद हैं। दिगम्बर अखाड़े के महंत और श्रीरामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष रहे स्वर्गीय रामचंद्र दास परमहंस को उनके हाथों का सिला बंगला कुर्ता और सदरी सुहाती थी तो हनुमानगढ़ी के महंत ज्ञान दास ने भी जब तक कुर्ता धारण किया, उन्होंने उसे सिलवाने के लिए हमेशा बाबू खान को ही याद किया। निर्मोही अखाड़े के सरपंच महंत भास्कर दास और कनक भवन के चारों पुजारियों के कुर्ते सिलने की जिम्मेदारी भी बाबू खान पर ही है। यह विडम्बना ही है कि रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद के जिस बहुचर्चित विवाद को लेकर अयोध्या बीते दो दशकों से सुर्खियों में आया, वहां के मठों से अमन व भाईचारे का ही पैगाम दिया जाता रहा है। हिन्दू समुदाय के एक वर्ग से नाराजगी मोल लेकर भी हनुमानगढ़ी के महंत ज्ञानदास ने वर्ष 2003 व 2004 में अपने आवास पर रमजान के महीने में इफ्तार आयोजित किया था। उन लम्हों को याद करके अयोध्या के मुसलमान आज भी भाववि ल हो जाते हैं। इतना ही नहीं, उसी वर्ष अयोध्या मुस्लिम वेलफेयर सोसाइटी की जानिब से बाबू खान के घर पर आयोजित ईद मिलन समारोह में वह 400 साधुओं की मंडली लेकर पहुंचे थे और वहां हनुमान चालीसा का पाठ किया था। हनुमानगढ़ी की 40 दुकानों के किरायेदार मुसलमान हैं लेकिन किसी को याद नहीं कि उनसे दुकानें खाली करने को कहा गया हो।
http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=36&edition=2010-09-24&pageno=1
साभार- दैनिक जागरण दैनिक हिंदी समाचार पत्र
मेरठ संस्करण: शुक्रवार 24 , सितम्बर, 2010
राजीव दीक्षित, अयोध्या के दोराही कुआं के 45 साल सादिक अली उर्फ बाबू खान अपने को दुनिया का सबसे खुशनसीब मुसलमान मानते हैं। यह खुशनसीबी उन्हें दस वर्ष पहले हासिल हुई थी जब अयोध्या के विवादित स्थल पर विराजमान रामलला के मुख्य अर्चक (पुजारी) आचार्य सत्येन्द दास ने उनसे प्रभु के अंगवस्त्र सिलने की पेशकश की थी। तब से लेकर आज तक वह रामलला के कपड़े सिलते आ रहे हैं। मुसलमान दर्जी से प्रभु राम के कपड़े सिलवाने पर सवाल में छुपे संशय को भांपकर आचार्य सत्येन्द्र दास की उजली दाढ़ी के बीच मुस्कुराहट तैरती है। बोलते हैं, हिन्दू और मुसलमान, यह तय करने वाला मैं कौन होता हूं जब प्रभु राम स्वयं कहते हैं मम प्रिय सब मम उपजाये अर्थात मैंने ही सभी मानव को पैदा किया है, इसलिए मुझे सब प्रिय हैं। फिर आगे कहते हैं, रामराज्य की यह अवधारणा थी कि सब नर करहिं परस्पर प्रीति, चलहिं स्वधर्म सुनहि श्रुति नीति अर्थात जितने भी मानव हैं, वे परस्पर प्रेम करते हैं व अपनी परम्पराओं के अनुसार धर्मों का निर्वहन करते हैं। बाबू खान बड़ी सहजता से बताते हैं कि रामलला के रूप में भगवान बालस्वरूप में हैं, इसलिए उनका बागा (रामलला का अंगवस्त्र) सिलने के लिए मखमल के मुलायम कपड़े का इस्तेमाल होता है। वह बताते हैं कि रामलला हफ्ते के दिनों के हिसाब से वस्त्र धारण करते हैं। रविवार को वह गुलाबी, सोमवार को पूछने पर मिलता है जवाब मम प्रिय सब मम उपजाये सादिक मियां सिलते हैं रामलला के वस्त्र सादिक मियां.. सफेद, मंगलवार को लाल, बुधवार को हरा, गुरुवार को पीला, शुक्रवार को क्रीम कलर और शनिवार को नीले रंग का वस्त्र धारण करते हैं। बाबू खान पर सिर्फ रामलला के अंगवस्त्र ही नहीं, उनके सिंहासन की गद्दी और पर्दे को भी सिलने की जिम्मेदारी है। सिर्फ रामलला ही नहीं, अयोध्या के प्रमुख महंत भी उनके हुनर के मुरीद हैं। दिगम्बर अखाड़े के महंत और श्रीरामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष रहे स्वर्गीय रामचंद्र दास परमहंस को उनके हाथों का सिला बंगला कुर्ता और सदरी सुहाती थी तो हनुमानगढ़ी के महंत ज्ञान दास ने भी जब तक कुर्ता धारण किया, उन्होंने उसे सिलवाने के लिए हमेशा बाबू खान को ही याद किया। निर्मोही अखाड़े के सरपंच महंत भास्कर दास और कनक भवन के चारों पुजारियों के कुर्ते सिलने की जिम्मेदारी भी बाबू खान पर ही है। यह विडम्बना ही है कि रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद के जिस बहुचर्चित विवाद को लेकर अयोध्या बीते दो दशकों से सुर्खियों में आया, वहां के मठों से अमन व भाईचारे का ही पैगाम दिया जाता रहा है। हिन्दू समुदाय के एक वर्ग से नाराजगी मोल लेकर भी हनुमानगढ़ी के महंत ज्ञानदास ने वर्ष 2003 व 2004 में अपने आवास पर रमजान के महीने में इफ्तार आयोजित किया था। उन लम्हों को याद करके अयोध्या के मुसलमान आज भी भाववि ल हो जाते हैं। इतना ही नहीं, उसी वर्ष अयोध्या मुस्लिम वेलफेयर सोसाइटी की जानिब से बाबू खान के घर पर आयोजित ईद मिलन समारोह में वह 400 साधुओं की मंडली लेकर पहुंचे थे और वहां हनुमान चालीसा का पाठ किया था। हनुमानगढ़ी की 40 दुकानों के किरायेदार मुसलमान हैं लेकिन किसी को याद नहीं कि उनसे दुकानें खाली करने को कहा गया हो।
http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=36&edition=2010-09-24&pageno=1
साभार- दैनिक जागरण दैनिक हिंदी समाचार पत्र
मेरठ संस्करण: शुक्रवार 24 , सितम्बर, 2010
Monday, September 20, 2010
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